वैल विशर
रात अपने आगोश में बारिश की बूंदो की ठंडक सी समेटे हुए थी । कभी कभी बादलों की परतों को खोलता हुआ चाँद ऐसे निकलता मानो अपनी चांदनी की छटा बिखेरने की अदा से सबको रूबरू करवाना चाहता हो । पर बादलों ने भी आज चाँद के मिज़ाज़ को समझते हुए उसकी हर कोशिश को नाकाम करने की ठान ली थी ।फिर भी कोशिश करने पर , चाँद एक पल के लिए ही सही, निकल कर मुस्कुरा कर ऐसे छिप जाता बादलों में जैसे अपनी चांदनी से मुहब्बत बयाँ करने गया हो । ये रुमानियत भी कितनी अजीब शै है न ..दीवाने कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेते हैं अपनी मुहब्बत का इज़हार करने के लिए । लेकिन जिन्हें यह बरसात अच्छी ही न लगती हो तो कई बार लगता है कि शायद उन्हें मुहब्बत या रोमांस से कोई सरोकार ही नहीं । जो बस बरसात को एक घर रुकने की मज़बूरी समझे क्या वो इस मौसम की छटा और सावन में लग गई आग या इस मौसम में जुदाई के दर्द की गहराई को समझते भी होंगे ? मुहब्बत करने वाले तो बारिश की चंद बूंदो का भी इंतज़ार महबूब की तरह करते हैं । सोनिया तब...इन्ही बारिश की बूंदो से गीली मिटटी से उठती हुई महक को महसूस करती रहती ।ऊपर से ऍफ़ .एम् पर इस मौसम से जुडे पुराने गीत उसके भारी मन को और भारी कर देते ! उसका मन होता कि अंशुम को कहे कि लॉन्ग ड्राइव पर लेकर चले । कहीं रास्ते में रुक कर गर्म गर्म चाय पिए अंशुम के साथ और बारिश की इन फुहारों का मज़ा ले ।पर हर बार उसकी ये ख्वाइश अधूरी रह जाती या तो थके होने का या काफी देर हो गई है का बहाना तैयार रहता ।सोनिया का तन मन सुखा सा ही रह जाता ।" ये ईश्वर भी न दो अलग अलग शौक रखने वालों का संजोग क्यों बनाता है ?" सोनिया अकेले ही खिड़की पर उन फुहारों का मज़ा लेने के लिए खड़ी हो जाती ।फिर आसमान में कोई इक्का दुक्का सितारों को ढूँढते हुए सोचती ..कि माँ ने उनके विवाह से पहले ३६ में से ३२ गुण मिलने की बात बताई थी पर आज विवाह को दस साल हो गए ,गुण तो समझ नहीं आये पर शौक तो दोनों का एक नहीं मिलता ।माँ को याद करते हुए आँखें सजल हो आई ..जब माँ कहती थी ''पढ़ना लिखना ठीक है स्वावलम्बी बनो, पर पाँव ज़मीन से ही जुड़े रहने दो ..आसमान में मत उड़ो ।" तब बार बार एक ही जवाब होता था सोनिया का , ''माँ ,मैंने ये पी.एच .डी की पढाई और लेक्चरार की नौकरी ऐसे ही नहीं कि..मैं अपने सपनों के साथ उड़ना चाहती हूँ ..।" तब फिर माँ फिर समझाती ... '' कि आने वाली ज़िन्दगी में तुम्हारे साथ कोई और भी होगा ..तुम्हारा पति ...वो तुम्हें आज़ादी देगा तभी तुम उड़ पाओगी वर्ना इन सपनों को पूरा न करने का दुःख न तुम्हे उड़ने देगा न तुम्हें ज़मीन पर टिकने देगा । अच्छा यही है कि अपनी ख्वाइशों को एक ठहराव दो ।
मन ही मन बुदबुदा उठी सोनिया ..''हाँ, माँ तुम सही कहती थी ..मेरी ज़िन्दगी की पतंग की डोर को तो अंशुम के हाथों ने थाम रखा है, बस फर्क इतना है कि उसने इस पतंग को उड़ने के लिए तो छोड़ दिया है नील गगन में .. फिर भूल गया है ...उसकी सुध बुध लेने को कि वो पतंग कहाँ गई .या ..कट कर अपना अस्तित्व खो चुकी है ।"फिर एहसास होता सोनिया को कि अंशुम के हाथ शायद इस डोर को थामने लायक हैं ही नहीं । डोर की थाह पाना दुश्वार है ...आज भी ..आगे भी ..।क्यूंकि दोनों विपरीत दिशा के दो राही ..एक छत के नीचे रहते भी एक दूसरे की खवाइशों से अनजान । ज़रूरते पूरी होती हैं एक दूजे की पर ख्वाइशें हमेशा ही दम तोड़ती हैं जब दो इंसान पति पत्नी बन जाते हैं ..ऐसा वो अक्सर सोचती थी ! अंशुम काम से वक्त निकलता तो अपने दोस्तों ,जान पहचान वालों की मदद करने में हमेशा तत्पर रहता ।परिवार के प्रति कर्तव्य ,ज़िम्मेवारी में बेशक कमी आ जाए पर दुसरो की हेल्प करने में उसकी ख़ुशी अक्सर सोनिया की शिकायतों से अक्सर टकरा जाती । अंशुम हर बार .अपनी मीठी बातों से मैन्यूप्लेट करता ..सोनिया को हर सुविधा देकर ।बस एक वक्त नहीं था तो उसके पास परिवार के साथ वक़्त बिताने को या उसकी खवाइशों को समझने का ।बाहर अंशुम की छवि अच्छे इंसान की बनी हुई थी जो हर किसी के दुःख सुख में काम आता है ..वहीं अपनी पत्नी के दर्द से अनजान ! अभी कल ही इसी बात को लेकर दोनों में गर्मागर्म बहस हुई थी जिसमें एक दूसरे को जी भरके कटाक्ष किये गए और अंत उसी एक बात से हुआ जब अंशुम ने एक ही बात कही ..
''मैंने तुम्हें क्या कमी दी हुई है ? अपनी पर्सनल कार ..जॉब करने की आज़ादी ..मनपसंद कपडे गहने पहनने और शौक पूरा करने को पैसा ..कोई रोक टोक नहीं और क्या चाहिए तुम्हें ? अपने आसपास या अपनी सहेलियों को देखो और उनसे तुलना करो ..लेकिन तुम हो कि तुम्हारा मन ही नहीं भरता ...बस हर वक़्त शिकायतें ..तुम अपनी आज़ादी से जीना चाहती हो तो मुझे क्यों नहीं जीने देती ? हद्द है यार ..जो चाहिए बताओ ..आई विल गिव ईट टू यू बट प्लीज़ गिव मी माय स्पेस ...।" एक अजीब तल्खी से अंशुम अपनी आज़ादी की गुहार लगा रहा था ।
हद्द है इन मर्दों की भी ..अपने परिवार से भाग कर ,कुछ सुविधाएँ जुटा कर अपने फ़र्ज़ की इतिश्री समझ लेते हैं और एवज़ में अपनी आज़ादी, अपनी शांति की मांग करते हैं ! सोनिया को सुख सुविधाओं में वो सुकून वो प्यार दिखता ही नहीं था जिसको लाख कोशिशों के बाद भी ढूँढ नहीं पा रही थी।
''अंशुम मुझे किसी चीज़ की आवश्यकता नहीं ..बस मुझे तुम्हारा प्यार में सिमटा हुआ वक़्त चाहिए जो तुम अपनी इस सोशल सेवा में दुसरो की सेवा में बांटते रहते हो । मैं तुम्हें मना नहीं करती कि तुम दूसरों की मदद मत करो ..पर उसे अपने परिवार की खुशियों के साथ कम्पनसेट मत करो । याद करो हमने मूवी कब देखी ..कब तुम ने शिवम् को कभी टाइम दिया कि उसे किसी पार्क में ले गए हो । मैं तो सिर्फ इन छोटी छोटी खुशियों की डिमांड करती हूँ बस तुमसे ..ट्राई टू अंडरस्टैंड प्लीज़ ...!''सोनिया हर बार की तरह अपना पक्ष रखते हुए बोली ।
लेकिन दोनों की दलीलें व्यर्थ ही हो जाती । गाडी फिर वहीं उसी पटरी पर आहिस्ता आहिस्ता रेंगती रहती ! सब कुछ होते हुए भी कुछ कमी का खलना ..औरत के मन की यही त्रासदी है ।सब कुछ होते हुए भी ..इनकंप्लीट ..कभी मन से कभी तन से ...। एक औरत मन से होते हुए देह तक आती है पर मर्द..? तन से शुरू तन पर ही ख़त्म उसकी खोज ...एक प्रैक्टिकल एप्रोच के साथ जीने वाले अमूमन पति स्त्री मन को समझ ही नहीं सकते ! हाँ जिस मर्द के पास पैसा है वो अपनी पत्नी को ''सो कॉल्ड '' खुशियां खरीद के दे सकता है बस नहीं है उसके पास न मन न ही कोई फीलिंग्स ..।
आज भी इसी उधेड़बुन में खिड़की के पास खड़ी थी कि मोबाइल पर मैसेज की लाइट ऑन हुई ।अक्सर रात को मोबाइल को साइलेंट मोड पर कर देती थी । सोनिया ने मैसेज देखा
...''..स्वीटी ..र यु देअर ..?'' अमित हेयर ।''
''या ..बट मैंने तुम्हे मना किया न मैसेज न करने को ।"सोनिया ने जवाब दिया !
''बट डिअर ऍम मिस्सिंग यू ।"
''वाए..? ...वेयर इस योर वाइफ ?''
''शी हैस गौण टू मीट हर पेरेंट्स ..आउट ऑफ़ सिटी फॉर टू डेज़..।"
''अच्छा ,तो इसलिए मैं याद आ गयी ? ''
''नहीं यार ..तुम तो हमेशा ही याद रहती हो ..रियली ...।" अपनी बात पर ज़ोर देते हुए अमित ने कहा ।
''हुंन्ह ..रहने दो झूठे ..ओ के वेट ..२ मिनट्स ..''! सोनिया ने अपना मोबाईल उठाया और दूसरे कमरे में आ गई ।अंशुम और शिवम् उसका ८ साल का बेटा दोनों ही सो चुके थे ।वो अक्सर लेट सोती थी ।अंशुम को मालूम था कि सोनिया अक्सर रात थीसिस और अपने प्रोजेक्ट वर्क में व्यस्त रहती है ।इस बात से कई बार अंशुम चिढ़ता था ! उसे लगता कि उसकी पत्नी '' उनके '' कमरे में बस मौज़ूद हो । पलंग के दूसरे छोर पर ....बेशक वो खर्राटे भर सोता रहे बाजू में और पत्नी छत पर लटके पंखे को देखती रहे या फिर तन मन से सुलगती हुई करवटें बदलती रहे रात भर । बिस्तर पर निर्जीव ..निष्प्राण सी लेती अपने आंसुओं से अपने अरमानों को जज़्ब करने में अब सोनिया को कोफ़्त सी होती । इसलिए खुद को रात को और भी व्यस्त रखती कि थक कर सो जाए । एक लम्बी बहस और जदोजहद के बाद सोनिया और अंशुम ने अपने हिसाब से सोने की आदत को तो स्वीकार कर ही लिया था बाकि कुछ बदले न बदले । सोनिया को तो इस में भी सुकून महसूस हुआ । इसलिए बेख़ौफ़ अपना मोबाइल उठाकर दूसरे कमरे में आकर अमित से बात करने लगी मैसेज से ।अमित उसका कॉलेज का ही सहपाठी था, जिससे उसकी मुलाकात उसी के कॉलेज में हुई थी जहाँ वह भी अपने किसी रिश्तेदार का एडमिशन करवाने के लिए आया था । वह तो पहचान न सकी पर अमित ने पहचान लिया था उसे ।बातों बातों में दोनों ने एक दूसरे के परिवारों के लिए जान लिया और अमित की अंशुम से जान पहचान भी निकल आई ।अपने रिश्तेदार के एडमिशन की एक दो औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए अमित एक बार फिर से कॉलेज आया तो सोनिया उसकी मदद के सिलसिले में प्रिसिपल से मिली और एडमिशन करवा दिया । उस दिन अमित का वो रिश्तेदार किसी कारणवश आ नहीं पाया !अमित ने उसका शुक्रिया करने की फीलिंग से कैंटीन में चलने को कहा । ब्रेक थी सो सोनिया बिना किसी नानुकर के चल पड़ी ।कॉफ़ी का आर्डर दिया । दोनों खामोश थे ।
''यार ..थैंक्स ए लॉट .... ! "ख़ामोशी को अमित ने ही तोडा .!
''कम ऑन ..अमित ..डोंट बी सो फॉर्मल ..!"
''बट ..स्टिल..थैंक्स यार ..! ''
बात बदलने की मंशा से सोनिया ने पूछा..!
"कॉफ़ी या चाय ''..?
''कुछ भी जो तुम चाहो ..!'' अमित ने थोडा अंदाज़ से कहा !
दो पल की ख़ामोशी के बाद ...
'' यार एक बात कहूं...? बुरा न मानो तो ..? ''
''हाँ कहो न ..बुरा क्यों मानूंगी ...?"
''तुम कॉलेज में एक दम से पतली दुबली हुआ करती थी ..हाँ ..शोर शराबा पूरा करती थी फ्रेंड्स के साथ ..हम लड़के अक्सर तुम्हे नोटिस करते थे ...फ्रैंकली स्पीकिंग ..तुम एक्टिव तो थी पर कोई लड़का ''उस ''तरह से नहीं देखता था ..गौरा रंग ..अच्छे नैन नक्श थे तुम्हारे पर ...।"अमित गौर से देखते हुए सोनिया को बोला ..।
''उस तरह से मतलब ..क्या ..?'' उस शब्द पर एक प्रश्नचिन्ह सा लगाते सोनिया ने थोडा गुस्से से कहा।
''अरे मेरा मतलब ..पटाने से ...था ..! लगता था इतनी दुबली पतली लड़की को फूंक भी मारो तो हवा में उड़ जाएगी ! आई मीन तो से ..तुम पटाने वाला मैटीरियल नहीं थी ऐसा सब लड़के अक्सर कहते थे ।''
'' प्लीज़ ,डोंट माइंड ...पर आज ...तो तुम बिलकुल ही अलग ...तुम्हारी परसनेलिटी तो टोटली डिफरेंट ..स्वेयर ऑन यू ..नाउ यू आर लुकिंग टू हॉट न सेक्सी ..पहली बार तुम्हें देखा तो विश्वास ही नहीं हुआ था कि तुम वही सोनिया हो । बात करने का अंदाज़ भी कितना बदला सा है..ऐसे जैसे तुम कुछ सोच सोच कर बोल रही हो ..मालूम है उस दिन मैं तुम्हारे लिप्स को ही देखता रह गया । तुम्हारा कॉन्फिडेंस ...अंदाज़ ..सब कुछ बदला सा ...ऊपर से तुम्हरा ये फिगर ..लुकिंग सो ग्रेसफूल इन साड़ी ..सिम्पली वाओ ..।"तारीफों के पुल बांध दिए अमित ने ! असहज सी हो गई सोनिया ।
''अच्छा ..अच्छा बाते मत बनाओ । एन डोंट ट्राय टू फलर्ट विद मी नाओ ...। आई ऍम मैरिड एंड हेव ऐ ८ यिअर ओल्ड किड ...।"
''सो वॉट ..आई टू हेव अ किड ..वाट्स न्यू ...? और मैडम फ़लर्टिंगके लिए कोई उम्र नहीं होती ..बस मन जवां होना चाहिए .. फिर एक खूबसूरत सेक्सी फ्रेंड मेरे सामने खड़ी है ..?" आँख मारते हुए अमित ने एक मुस्कान के साथ कहा !
'' नो ..आई ऍम कमिटिड विद अंशुम ..नो प्लेस फॉर अदर....!" सोनिया ने नकारते हुए कहा !
'' अरे डोंट बी सो रुड यार ...प्लेस तो मैं बना सकता हूँ ..तुम्हें पता भी नहीं चलेगा ...हा हा ।"
''.अरे यार मज़ाक कर रहा हूँ ...!'' ..अपनी बात पर हँसने के बावज़ूद सोनिया का कोई रिएक्शन नहीं देखा तो बात मज़ाक में टाल दी ।
''ओके ,नाओ ब्रेक इज़ ओवर ..मेरी क्लास है ..मुझे जाना है ! "कहकर सोनिया उठी और अमित से एडमिशन को लेकर जो भी बात होगी बता देगी कहकर चली गई !
इस एक औपचारिक मुलाकात के बाद १५ दिन बाद अमित और सोनिया की मुलाकात फिर से एक मॉल में हुई जहाँ सोनिया हैंडबैग पसंद देखते हुए अमित से टकरा गई । लेकिन सोनिया को अपनी सहेली के साथ देख अमित ने सिर्फ मुस्कुराते हुए हाय ,हेल्लो किया और एक दूसरे के परिवार के हाल चाल पूछने में ही सीमित रहा । आकर्षण या फ्लर्टिंग की लम्बी फेहरलिस्ट में ऐसी मुलाकातों के संयोजन अपने आप बनने लगते हैं । औपचारिकताओं के निवारण करते करते सोनिया और अमित के परिवार त्योहारों मौकों पर मिलने लगे । हालाँकि पहले पहल सोनिया को थोड़ी झिझक हुई पर अंशुम और अमित की जान पहचान ने इस झिझक को हटा ही दिया। यूँ भी अंशुम की सोशलाइज़ करने की आदत थी कि जितना दायरा बढ़ा सको बढ़ाओ । ऊपर से अमित का बेबाकपन ऐसा कि अंशुम भी जो कम बोलते थे उसकी कंपनी में सहज होने लगे थे ।
दूसरे कमरे में आकर सोनिया ने मैसेज किया ..'' हाँ बोलो...इतनी रात गए मैसेज क्यों किया ?"
''बोला न ..ऐसे ही तुम्हारी याद आ गई ...।"
'' नेहा नहीं है, तभी याद आई ...? '' सोनिया ने बनावटी शिकायत सा कहा।
'' अरे नहीं यार ..बस मौसम कातिलाना है न !''
''अच्छा तो वापिस बुला लो न ..नेहा को !"
"वो नहीं आ सकती ..और तुम क्या नेहा नेहा लगा रही हो ? मैं तुमसे बात कर रहा हूँ ..आज तुम्हें मिस कर रहा हूँ और तुम हो कि बात घुमाती जा रही हो ।''अमित ने थोड़ी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा !
''ओके ,बाबा सॉरी ..हाँ बोलो ..जल्दी मुझे सुबह जल्दी उठना है और अब काफी देर हो गई है ।"
''यार क्या मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ तुम्हें सोने की पड़ी है ? हाउ रुड यू आर ..!"
''अच्छा कहो ..क्या कहना है ...?
'' एक बात कहूं ? बुरा तो नहीं मानोगी ?''
''हां बोलो न ..!''
''कल मिलो न ...प्लीज़ ..''! आई ऍम डाइंग तो मीट यू।''
''नहीं अमित ..ऐसे कैसे मिल सकती हूँ । देखो हम अच्छे दोस्त हैं ..अच्छी बात यह है कि हम परिवार के साथ भी मिल लेते हैं पर इस तरह अकेले मिलाना मुझे मुनासिब नहीं लगता ।" सोनिया थोडा घबरा गई अमित के मिलने के अनुरोध को लेकर ।हालाँकि उसे अमित की कंपनी अच्छी लगती थी पर यूँ अकेले मिलना उसकी सोच और हिम्मत से परे था ।
''अरे यार सोनू ...मैं तुम्हें खा नहीं जाऊँगा ...अजीब बातें करती हो ....। तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है क्या ?आज ६ महीने हो गए एक दूसरे को जानते हुए ।कभी मैंने तुमसे कुछ कहा ? कुछ गलत शब्द या कभी तुम्हें टच भी किया ?'' अमित अपनी सफाई देने लगा !
''अमित ऐसी बात नहीं है ..आई ट्रस्ट यू ..बस मेरी कॉन्शियस अल्लाओ नहीं करती।"
''अच्छा ..कॉन्शियस ...? क्या कहती है कि अमित बदमाश है ? यार ट्रस्ट मी ...विल नोट डू एनीथिंग ...जस्ट टू स्पैंड क्वालिटी टाइम टूगैदर ...! नथिंग विल हैपन बिटवीन अस ..प्रॉमिस ।"
''नो ..नॉट पॉसिबल ..!" सोनिया अचानक आज इस नए प्रपोसल से घबरा सी गई ।
''स्वीटी ...प्लीज़ ..बीलिव मी ! योर कंसेंट एन योर परमिशन इज़ मोर इम्पोर्टेन्ट देन एनीथिंग एल्स ...स्पेशली योर ट्रस्ट इज़ मोर इम्पोर्टेन्ट ..हनी .!"
अमित ने सोनिया सवालों में ऐसा घेर लिया कि उससे कोई उत्तर देते न बना ।
'' ओके मैं सोच कर बताऊंगी ..सुबह ..पर अभी नहीं।" सोनिया ने आश्वस्त करने की कोशिश की अमित को ।
''पर जवाब हाँ में ही देना ..प्लीज़ ...और हाँ एक बात और मानोगी जान ? ''
''अब क्या है ..बोलो...''!
''हनी ,वन्स आई सॉ योर पिक इन ब्ल्यू साड़ी। आई वॉन्ट टू सी यू इन दैट साड़ी अगेन । कैन यू ड्रेस योरसेल्फ फॉर मी ..प्लीज़ ..?"
'' कितनी बार तो साड़ी में तुमने देखा है ..ये ब्ल्यू साड़ी वैसे भी पुरानी हो चुकी है ..आई एम् फेड अप ऑफ़ डेट ...।"
''...सो व्हाट ...? इफ यू विल कम..यू हैव टू वियर ईट ..जस्ट फॉर मी ....न दैट्स फाइनल न ओवर ..।"अमित ने इसके साथ ही गुडनाइट और लव यू न मिस यू कह दिया मानो उसकी न सुनने का मौका ही न देना हो ।
सोनिया ने मोबाइल बंद किया और आँखे बंद कर अमित की मैसेज की सभी बातों को मन ही मन याद किया और मुस्कुराने लगी ।एक अजीब सी हरारत कहो या एक्ससाइटमेंट सी होने लगी उसको इन बातों को सोच सोच कर । कभी सोचती "यह तो मर्दो की फितरत है , किसी भी औरत से इस तरह फलर्ट करना ..एज़ यूसुअल ,आज भी वही मेरे साथ ....पर आज क्यूँ उसने ऐसा कहा है ..क्यूँ साड़ी डालने की ज़िद्द कर रहा है? '' जितना वो जानने की कोशिश करती उतनी ही उसके ख्यालों में एक अजीब सी रुमानियत सी छा जाती ।अक्सर होने लगा था ..जब भी कभी अमित की बातों को याद करती उसे अपने बेहद करीब महसूस करती ।अपनी पलकों को बंद कर लेती ..ख्यालों में ही अमित के साथ खुद को जकड़ा हुआ पाती । एक अतृप्त ..सुप्त सी भावना जागने लगती ..अपने आस पास के लोगो से दूर ..अनजानी राह पर खड़ा पाने लगी ..जहाँ अमित अंशुम की जगह हाथ बढ़ाता हुआ दिखता..। वो बढ़ जाती अमित का हाथ पकड़ कर और जब वो वापिस लौट कर आती तो अंशुम को हमेशा दरवाज़ा बंद करते देखती कि वो बाहर ही खड़ी है और अंशुम उसके लाख पुकारने पर भी दरवाज़ा खोल नहीं रहा ।फिर पीछे मुड़ कर देखती है तो अमित भी नज़र नहीं आता ।सोनिया इस परिस्थति में खुद को असहाय पाकर रो रही है कि इतने में उसकी आँख खुल जाती है । वह इस ,इस सपने को समझने की कोशिश भी करती है पर शायद समझना चाहती नहीं कि अमित का बढ़ा हुआ हाथ थामे या अंशुम का उसके लिए बंद करना क्या है वो समझे।इंसान जब खुद ही अपनी इच्छा को खुद पर हावी कर लेता है न उसे सही गलत की परिभाषा वैसे भी समझ के दायरे से बाहर हो जाती है। बस वो अपनी ही दुनिया में जीता अपनी ही इच्छाओं का ताना बाना बुनता रहता है । सोनिया के कदम ठिठकते पर फिसलन अक्सर टिकने नहीं देती । अमित की हर बात उसे अच्छी लगने लगी थी ..उसका बात करने का अंदाज़ ..उसका स्टाइल ..उसकी परसनेलिटी ..! उसकी चौड़ी कद काठी देख कर सोनिया मन ही मन अंशुम और अमित के बीच एक अनजानी सी भेद करती लकीर खींच लाई ।अंशुम की औसत कद काठी उसे अपनी कल्पनाओं में कम लगने लगी परन्तु अमित का लम्बा कद और गठा हुआ शरीर उसकी फैंटेसी का हिस्सा बन गया । समानता के धरातल पर दोनों को रखने लगी तो अमित के इस बदन का आकर्षण जब अंशुम के बदन में ढूंढ़ती तो न पाकर एक टीस सी पैदा होती। आज अपनी सहेली की कही बात कि औरत का वज़ूद मर्द के चौड़े सीने में समां जाए तो वो उस मर्द की बाहों में सुकून पाती है। सोनिया अमित की बाहों में खुद के समां जाने का तस्सवुर करने लगी । कमी अंशुम में नहीं थी पर इंसान का मन इतना कमज़ोर होता है कि अधिक पाने की लालसा खत्म ही नहीं होती । फिर औरत के मन की थाह पाना तो वैसे भी नामुमकिन है । सोनिया अक्सर अपनी फेंटेसिस के साथ जीती हुई ..अपने पति और बेटे के साथ सोने की बजाय ख्यालों में अमित के साथ दूसरे कमरे में कब गहरी नींद में चली जाती उसे मालूम ही न होता।
क्रमशः ...